इंचागढ़ में हाथी ओर ग्रामीण, नेताओ के लिए सिर्फ राजनीतिक मुद्दा बनकर रह गई, जिसे राजनीति चमकानी होती है कुद पड़ते है। मगर आजतक स्थाई समाधान नही निकला

गांव की ओर रुख करते हाथियों का झुंड

 चांडिल : इंचागढ़ क्षेत्र के लिए हाथी एक राजनीतिक रोटी सेकने का मलाईदार मुद्दा बनकर रह गया है। जिस किसी को भी अपनी राजनीति चमकानी होती है कुद पड़ते है इस मामले में।

बता दे कि उक्त क्षेत्र में आय दिन हाथियों के झुंड द्वारा कही न कही तोड़-फोड़ करना, फसलों को नष्ट करना, जानमाल की क्षति पहुँचाना अब आम बात हो गई। मगर इन संवेदनशील मुद्दों को भी राजनीतिक रोटी सेकने के लिए अब राजनेताओं द्वारा नए नए हथकंडे अपनाए जाने लगे। इसका सीधा उदाहरण हाल के दिनों में हाथियों द्वारा हुई घटनाओं से पता लगाया जा सकता है जहाँ घटनाओं के बाद घड़ियाली आंसू बहाने के साथ ही पीड़ितों के बीच चादर, मुरही, कुछ एक-दो किलो चावल या कुछ एक सो रुपये तक बांटे गए। जिसपर क्षेत्र के बड़े से बड़े और छोटे छितपुटिया नेताओ द्वारा उसे अपने फायदे एंव अपने पाले में लाने के लिए भुनाने की हर संभव कोशिश तो की गई। मगर इसका परमानेंट समाधान कैसे निकले इस ओर सोचने की किसी ने न ही जहमत उठाई, न सोंची न ही पहल की। जिसका खामियाजी आए दिन गांव के गरीब ग्रामीण भुगत रही है। इस अंधी और मीडिया में चमकती राजनीति में हाथियों के झुंड द्वारा उन गरीब ग्रामीणों के जमिनो का खेत मे फसल को नष्ट करने से लेकर घर या कीमती सामान की हानि के साथ ही कभी कभी अपने जान देकर भी चुकानी पर रही है। मगर ये नेता सिर्फ गांवों में एक दो टोर्च-पटाखे बांटने, मरणो प्रान्त मुआबजा की चेक देने या घटना के बाद उन गरीबो के बीच मामूली सी समान वितरण करने या पदाधिकारी से वार्ता के समय की फोटो खींच मीडिया में बने रहना एंव इसका राजनतिकी फायदा उठाना बखूबी जानते है।

इस मामले में जब ग्रामीणों से बात की गई तो उन्होंने कहा कि हमेशा वन विभाग घटना के बाद गांव पहुंच अपनी कार्यवाही की खानापूर्ति कर चले जाते है। वही नेताओ द्वारा कुछ मद्दत एंव आश्वासन तो मिल जाती है मगर वह भी कभी-कभी सिर्फ अखबारों तक ही सिमट कर रह जाता है। ह कोई बड़ी घटना या सामग्री की छती हो गई तो वन विभाग की ओर से मुआबजा मिलता है मगर महीनों के बाद। एक ग्रामीण ने कहा कि अब तो ऐसा महसूस होने लगा है कि हाथी ओर हम नेताओ के लिए बस एक राजनीतिक मुद्दा ओर वन विभाग के पदाधिकारियों के लिए सिर्फ एक फाइल बनकर रह गए है।

बहरहाल अब देखना यह होगा कि इंचागढ़ की जनता के दिन कब बहुरेंगे, कब उन्हें हाथियों के उत्पाद से राहत मिलेगी, वन विभाग इसके लिए क्या समाधान निकलेंगे?, नेताओ द्वारा इस ओर क्या सकारात्मक पहल किया जाएगा? जिससे हाथियों का झुंड गांव एंव गरीब ग्रामीणों के खेत या घर की ओर अपना रुख न करें। या फिर क्षेत्र में हाथी ओर राजनीति एक दूसरे के पूरक हमेशा बने ही रहेंगे।


चांडिल से भास्कर मिश्रा की रिपोर्ट।

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