चांडिल : सरायकेला जिला अंतर्गत चांडिल डेम की अपनी एक अलग ही कहानी है। चांडिल डेम बना तो था क्षेत्र के लोगो के विकास एंव सुविधाओ के लिए मगर आज यह राजनीति करने वालो के लिए उच्चकोटि का राजनीतिक मुद्दा बनकर रह गया। एक तरह से कह सकते है कि चांडिल डेम एक दुधारू गाय बन गई है। जिसे राजनीति पार्टियां चारा तो देना चाहती है मगर उतना ही जितना में दूध दुहा जा सके वही गाय पर निर्भर बछड़े को दूध पिलाया जाता है मगर वह भी उतना ही जितने के बाद दूध दुहा जा सके। इससे एक काम तो बखूबी हो रही कि उक्त दुधारू गाय के मालिक व उनके आश्रित परिवार वाले तो दूध बेचकर दिनों दिन धनवान हो रहे मगर गाय के बछड़े दिनों दिन कमजोर और बेबस होते जा रहे है। आलम यह है कि आज इंचागढ़ क्षेत्र में अगर आपको एक मुखर राजनीति करनी है तो आपको पहले नम्बर पे चांडिल डेम एंव विस्थापितो को रखना होगा। जबतक इन्हें चारा के रूप में इस्तेमाल नही करेंगे आप राजनीति के अवल पायदान पर नही पहुंच सकते है।
👉🏻चांडिल डेम योजना नही मुद्दा बन बैठा, राजनीति सिर्फ फाटक खुलवाने तक ही सीमित रह गई है नेताओ के लिए..
और यही वजह है कि इस ज्वलंत मुद्दे को आज हर कोई सिर्फ राजनीतिक फायदे तक ही स्तेमाल कर रहा है। उसके बाद कोई जिये या मरे उनसे किसी को कोई सरोकार नही। आज चांडिल डेम सिर्फ फाटक खोलवाने ओर प्रभावित लोगों के बीच तिरपाल, दरी, चावल बांटने ओर सबसे बड़ी चीज एक अनोखा स्वप्न दिखाने तक ही सीमित रह गई है। और कभी कभार उससे राजनीतिक स्वार्थ पूरा होता नही दिखे तो एक आध पदाधिकारियों को धमकाने एंव उनके कार्य सेली पर सवाल उठाकर बस पल्ला झाड़ लिया जाता रहा है। बस इतने में ही विस्थापित खुश होते रहे है। और यही कारण है कि हर बार बारिश में घर डूबना एंव फाटक खुलवाना एक निरन्त प्रक्रिया बनकर रह गई है।
👉🏻इंचागढ़ विधानसभा सीट नेताओं के फतह के लिए सबसे आसान सीढ़ी है विस्थापित मुद्दा...
इसी कारण राजनीति करने वाले आज लाव लश्कर के साथ डेम पहुंचते है राजनीतिक दाव चलते है फोटो वीडियो शूट होता है। फिर फाटक कुछ एक मीटर खोल दिया जाता है और फिर सभी अपने-अपने आलीशान बंगलो व सभी सुविधाओं से युक्त घरों में चले जाते है। भोगता तो सिर्फ विस्थापित है। यह वही विस्थापित है जिन्होंने कभी अपने एंव अपने आने वाली पीढ़ियों कि उज्जवल भविष्य की चिंता लिए हुए अपनी माँ जैसी जमीन व लहलहाती खेतो को कुर्वान कर दिया।
👉🏻झारखण्ड बनने के बाद से कई सरकारें आई व चली गई, विस्थापित मुद्दा आज भी जस का तस...
यहा यह बताते चले कि चुनाव के वक्त एक पार्टी के प्रमुख ने इशारों ही इशारों में दिल्ली के CM केजरीवाल की तारीफ करते हुए यह जताने की कोशिश की थी कि यहा की जनता को में बिजली पानी मुफ्त उपलब्ध करूंगा। ओर आज यह इंचागढ़ में सच होता दिख रहा है। इसमें इंचागढ़ के कई गांव में आजतक बिजली पहुंची ही नही तो फ्री की बात ही नही, तो दूसरी तरफ पानी तो फ्री में घर-घर अंदर तक पहुंचा दी गई है। आज राजनीति एंव विस्थापित एक दूसरे के पूरक हो गए है। अब इससे इतनी आसानी से पार नही पाया जा सकता। क्योंकि चांडिल डेम अब महत्वाकांक्षी योजना से निकल कर महत्वाकांक्षी मुद्दा बनकर गई है। ओर आज सभी जानते है कि योजना तो कभी न कभी पूरी हो ही जाती है मगर मुद्दा खत्म होने से उसपर आश्रित राजनीतिकरो की राजनीति ही खत्म हो जाएगी।
अतः अब इंचागढ़ के विस्थापितों को यह मानकर चलना चाहिए कि उन्हें इसी व्यवस्था में अपनी सुविधा तलाशनी होगी वह भी राजनीति व राजनीति करने वालो से हटकर इन्हें अपनी राह खुद बनानी होगी। वरना इनकी समस्याओं का आकलन पदाधिकारियों द्वारा AC कार्यालयों में बैठकर ओर राजनीतिक पार्टियों एंव नेताओ द्वारा चांडिल डेम के फाटक खुलवाने तक से होती रहेगी। ओर यह हमेशा एक राजनीतिक मुद्दा बने रह जाएंगे।
चांडिल से भास्कर मिश्रा की रिपोर्ट।
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