कुछ लोगो के निजी राजनीति के जाल में फंसकर चांडिल बिहार स्पंज आयरन कंपनी हुआ था बन्द, आज फिर वही गलती दोहराई जा रही।

कम्पनी गेंट पर बैठे स्थानीय व रैयतदार

 चांडिल : एक समय मे चांडिल प्रखंड के हुमिद स्थित बिहार स्पंज आयरन लिमिटेड कंपनी काफी चर्चित कम्पनी थी। जिसकी तारीफ एक समय  में यहा आये झामुमो के सुप्रीमो शिबू सोरेन ने दुधारू गाय कह कर किया था। मगर समय ओर यहा के कुछ स्थानीय नेता एंव बाहरी राजनीति के चक्कर मे धीरे धीरे कम्पनी को विकलांग करते चले गए और एक समय ऐसा आया कि कम्पनी को कुछ दिनों का शटडाउन कह कर बन्द कर दिया। ओर फिर शुरू हुआ वास्तविक व जरूरतमंद कामगारों की तकलीफे पर अब हो क्या सकता था जब चिड़िया चुग गई खेत।

इधर कई मशक्कतों ओर थपेड़ो के बाद आज पुनः चांडिल बिहार स्पंज आयरन लिमिटेड कंपनी पुनः खड़ी हो शुरुवात होने को है। मगर फिर से कुछ निजी स्वार्थधारी राजनीति के पक्षधर एंव नेतागिरी से लबरेज लोग सक्रिय हो गए है। और पुनः कम्पनी को ठीक से शुरू होने से पहले ही लगाम लगा अपनी मनमानी व बर्चस्व स्थापित करने की फिराक में स्थानीय एंव रैयतदारो को बरगलाने में लग गए है। जिसमे कुछ हदतक वे कामयाब भी हो रहे है। मगर उन्हें बीते हुए वह दिन ओर उन दिनों में वे गरीबी को झेलने वाले स्थानीय व रैयतदार याद नही आए। जिन्हें कोई उस वक्त पूछने वाला भी नही था। जब कम्पनी बन्द हुई थी।

वही अब इधर कुछ जानकारों का कहना है कि जब किसी बात का समाधान बातचीत से हो सकते है। तो विरोध व काम को बंद या प्रभावित कर पुनः कम्पनी को काल के गाल में क्यो धकेलना।

वही इनसब से स्थानीय व रैयतदार कामगारों की छवि खराब एंव बात बात पर कम्पनी में काम बंद करवाने वालो में शामिल हो रही। ओर इन्ही कारणों से कभी यह कम्पनी रातों रात बन्द कर दी गई थी। ओर इन्ही पुरानी रिकॉर्ड के कारण आज के समय मे कम्पनी प्रबंधन को इनसभी पर विश्वास या भरोसा नही बन पा रही। मगर सवाल यह भी उठ रहा है कि एक दो नेतागिरी करने वालो के कारण कम्पनी में काम करने वाले सभी कामगार या रैयतदारो को उनके वाजिब हक से कम्पनी प्रबंधन द्वारा बंचित करना कहा तक उचित है। 

जबकि दोनों तरफ के पक्ष को अभी अपने-अपने तरीके से एक दूसरे को विश्वास में लेने की कोशिश करनी चाहिए। फिर वार्ताओं के माध्यम से बीच का रास्ता निकालने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। यह दवाब की राजनीति कभी किसी का भला नही कर सकती। अबतो देखना है कि 22 सितंबर को होने वाली त्रिस्तरीय वार्ता में क्या तय होता है या फिर वार्ता बेनतीजा ही रहती है। कुछ जानकारों का मानना है कि वार्ता के दौरान दोनों तरफ से सरल रुख अपनाकर रास्ता निकालने पर जल्द सहमति बन जाये इसी में सभी का भलाई है।

चांडिल से भास्कर मिश्रा की रिपोर्ट।

9155545300

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6 Comments

  1. Kuch log news ke name per yahan ke local ko badnam aur company mengment ko hero banane ki nakamyab koshish kar rahe hai. 🤭🤭🤭 photos me j

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    1. यहा तो लोकल कामगारों के समर्थन में लिखा गया है। की ऐसे में उन्हें कितना दिक्कत ओर परेशानी उठानी पर जाती है। यह बात कुछ राजनीति करने वालो को समझ नही आ रहा।

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  2. मै खुद लोकल हूँ एंव यहाँ का विस्थापित भी इस लिए मुझसे बेहतर और कोई नही जान सकता क्या सही है और क्या गलत। तो आपसे नम्र निवेदन है कि निजी स्वार्थ के लिए इस प्रकार के मनगढ़ंत कहानी बना कर अफवाह न फैलाए।

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    1. मेरा भी जन्म यही हुआ है। एंव मैने बचपन से ही इस क्षेत्र को देखा और जाना है।
      एंव श्रीमान जी इसमें मेरा कोई स्वार्थ नही है।
      ओर कृपया बताएं कि इसमें मनगढ़त क्या है।
      अगर सही रहा तो जरूर सुधार करूंगा।।

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  3. मनमानी तो कम्पनी कर रही है पुराने कामगार विस्थापित प्रभावित लोगो को काम मे वापस न बुलाकर, बाहरी लोगो को काम दे रही है और यहां के लोगो को सिर्फ गुमराह कर रही है वार्ता कितना वार्ता होगा अपना हक का नौकरी मांग रहे है और यहां कोई नेतागीरी नही कर रहा अपना हक मांग रहा नौकरी मांग रहा ।जो आपको नही दिखा इस लिए हेडलाइन मे लिख दिये राजनीतिक के चक्कर मे तो दादा हमलोग राजनीति नही करते मेहनत करते है काम करते है और आगे भी काम ही करना चाहते है। पर कंपनी काम नही दे रही गुमराह कर रही और आप जैसे लोग इनडाइरेकटली कंपनी को सपोर्ट कर रहे। दादा हमलोग का दुख छापिये हेडलाइन मे लिखिए कंपनी लोकल को नोकरी न देकर बाहरियो को तोब्बजो दे रही, 75% हक तो अब झारखंड सरकार ने भी दिया है कंपनी वो भी फोलो नही कर रही ये छापिये, जमीन नौकरी के नाम पर लिया है अब नौकरी नही दे रहा ये छापिए संजू फिल्म जैसा आपलोग नमक मिर्च लगा कर अपना न्युज पेश कर रहे है और लोगो को दिग्भ्रमित कर रहे।

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