दलमा : रजनी हाथी के गिरते स्वास्थ्य का जिम्मेदार कौन, वन विभाग जल्द सकारात्मक पहल करे अन्यथा मंच जन आंदोलन करने की तैयारी करेगी- सुकलाल


 चांडिल : दलमा इको सेंसेटिव जोन के मुख्य द्वार पर बांधकर रखे गए रजनी (हथनी) और उनके साथ एक बच्चा हाथी के दिन पर दिन गिरते स्वास्थ्य को लेकर सुकलाल पहारिया ने आवाज उठाई है। उन्होंने कहा कि आखिर हाथियों के गिरते स्वास्थ्य का जिम्मेदार कौन है। हिरण पार्क में रह रहे जानवरो सहित इन हाथियों के लिए लाखों रुपये, गुर- चना व अन्य सामग्रियां आ रहे वह सब कहा जा रहे, क्या कोई उनके हिस्से का भोजन खा रहा है। इसके इस हालात के लिए कौन जिम्मेवार हैं। उन्होंने कहा जल, जंगल जमीन हम आदिवासियों का जन्म सिद्ध अधिकार है तो उनमें रहने वाले पशु पक्षी भी हमारी जिम्मेदारी है। आज इन जानवरों के हक अधिकार के लिए भी हमलोगों को आगे आना होगा नही तो कुछ इंसान रूपी गिद्ध इन्हें नोच नोच कर खाने को ताक लगाए बैठे है। इनका भोजन चट कर जा रहे वही दूसरी ओर इनके नाम पर बाहरी पर्यटकों से जेब भी भर रहे है। इसलिए संयुक्त ग्राम सभा मंच ने सरकार से रजनी को जंजीरों से जल्द से जल्द आजाद करने की मांग करते हुए कहा कि उन हाथियों सहित बारे में रह रहे अन्य जानवरों के स्वास्थ्य का देखभाल करने वाले गैरजिम्मेदार लोगो के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए। विगत दिनों संयुक्त ग्राम सभा मंच के सुकलाल पहाड़िया के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल दलमा इको सेंसेटिव जोन के मुख्य द्वार पर पहुंचा, तो देखा कि रजनी शारीरिक रूप से बहुत कमजोर हो गई है। मुख्य द्वार पर रजनी हाथिनी पर्यटकों का सेल्फी का केंद्र बना हुआ है, लेकिन रजनी और उनके साथी का शारीरिक स्थिति दिनों दिन कमजोर होना विभाग की उदासीनता को दर्शा रही है। उन्होंने आसंका जताई कि  पर्यटकों के मनोरंजन के लिए क्या रजनी को शारीरिक यातनाएं दी जा रही है। उन्होंने कहा कि रजनी को विभाग जंजीरों से आजाद करें। अन्यथा रजनी के सवालों को लेकर वृहद पैमाने पर जन आंदोलन की तैयारी की जाएगी। उन्होंने कहा कि इको सेंसेटिव जोन बनने से पहले दलमा में मनुष्य व जानवर दोनों साथ-साथ रहा करते थे। लेकिन कभी भी जानवरों की स्थिति इस तरह नहीं थी। ना कभी जंगल में रहने वाले इंसानो ने वन विभाग से गुहार लगाया है कि आप जंगल में रहने वाले हाथियों को लोहे की जंजीर में बांध के कैद करके रखें। उन्होंने जानना चाहा कि क्या रजनी के इस हालात को देखते हुए ये नहीं लगता है कि जानवरों के हक अधिकारों के साथ ये व्यवस्था खिलवाड़ कर रही है। जल-जंगल-जमीन की लूट से सिर्फ आदिवासी-मूलवासी ही नहीं जंगल में रहने वाले जानवर भी दमन का शिकार हो रहे हैं। अतः समय रहते वन विभाग के पदाधिकारी सुधर जाए नही तो मंच द्वारा आंदोलन करना मजबूरी होगी।

चांडिल से भास्कर मिश्रा की रिपोर्ट।
9155545300

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